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चराग़-ए-
जीस्त<ref>जीवन-दीप</ref> बुझा दिल से इक धुआँ निकला।
तड़प के आबला-पा<ref>पाँव के छाले</ref> उठ खडे़ खड़े हुए आखिर।आख़िर।
तलाशे-यार में जब कोई कारवाँ निकला॥
लगा है दिल को अब अंजामेकार का खटका।
यह कौन हज़रते ‘आतिश’ का हमज़बाँ निकला॥