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|रचनाकार= अमजद हैदराबादी
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<poem>
कामयाबी के नहीं हम ज़िम्मेदार।
काम की हद तक हमारा काम है॥
जब्र उस मुख़्तार पर क्यों कर करें?
अर्ज़ कर देना हमारा काम है॥
हुस्ने-सूरत को नहीं कहते है हुस्न।
हुस्न तो हुस्ने-अमल का नाम है॥
रह सके किस तरह ‘अमजद’ मुतमईन।
ज़िन्दगी खौ़फ़े-ख़ुदा का नाम है॥
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