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|रचनाकार=असग़र गोण्डवी
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>

मरते-मरते न कभी आक़िलो-फ़रज़ाना बने।
होश रखता हो जो इन्सान तो दिवाना बने॥

परतबे-रुख़ के करिश्मे थे सरे राह्गुज़र।
ज़र्रे जो ख़ाक से उट्ठे, वो सनमख़ाना बने॥

कारफ़रमा है फ़क़त हुस्न का नैरंगे-कमाल।
चाहे वो शमअ़ बने, चाहे वो परवाना बने॥

</poem>