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मरते-मरते न कभी आक़िलो-फ़रज़ाना बने / असग़र गोण्डवी
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17:50, 24 जुलाई 2009
होश रखता हो जो इन्सान तो दिवाना बने॥
परतबे-रुख़ के करिश्मे थे सरे
राह्गुज़र।
राहगुज़र।
ज़र्रे जो ख़ाक से उट्ठे, वो सनमख़ाना बने॥
अनिल जनविजय
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