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उसी ने जंगलों की यह दशा उघाड़ी है
उसी के हुक्म पर चलती रही कुल्हाड़ी है

सफेदपोश नया भीड़ में यह लगता है
ये झूठ बोलने में भी अभी अनाड़ी है


उगे न बीज फ़सल सूख सड़ जाए भले
फिक्र मज़दूर का तो आज की दिहाड़ी है

पयाम असल महाकाल ही की आमद है
अशोक वाटिका तो मौज में उजाड़ी है

दिलोदिमाग में अब तक भी प्रेम पलता है
हमारे बीच का ज़िन्दा अभी पहाड़ी है
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