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|रचनाकार=हरकीरत हकीर
}}
{{KKCatNazm}}
<Poem>
 ख़राशीदा* <ref>खरोंच लगी</ref> शाम
कंदील रोशनी में
एहसास की धरती पर
उत्‍तेजनाएं,अपना प्‍यार
और सौन्‍दर्य
इक तल्‍ख़* <ref>कटु</ref>मुस्‍कान लिए.....
सपनो के चाँद पर
उड़ते रहे वहशी बादल
इक खुशनुमा रंगीन जी़स्‍त*<ref>३)जिंदगी</ref>
बिनती है बीज दर्‌द के
मन के पानी में
पन्‍नों से.....
आदिम युग की रिवायतें*<ref>परम्‍पराएं</ref>
स्‍त्री यंत्रणाएं
समाज की नीतियाँ
जगायेगा मुझे.....
 १) ख़राशीदा-खरोंच लगी२)तल्‍ख़-कटु३)जी़स्‍त-जिंदगी४)रिवायतें-परम्‍पराएं{{KKMeaning}}
</poem>
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