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|रचनाकार=सुदर्शन वशिष्ठ
|संग्रह=सिंदूरी साँझ और ख़ामोश आदमी / सुदर्शन वशिष्ठ
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<poem>शंकर भोला
नहीं तुम्हारे सिर मुकुट
न वैजयंती माल
न पीताम्बर नीलाम्बर
पहनी मृगछाल।

बने धूड़ू
धूल पहन नाचे
जटा खलार
धूड़ू नचेया जटा ओ खलारी हो..............।
बैल की सवारी
न छत्र न ढाल
न धनुष न बाण
न रथ न शान।

किया अपमानित प्रजापतियों ने
किया उपहास हर पहर
फिर तुम बने
शव से शिव
शिव तुम बनवासी
नहीं आई तुम में
नगर की चालाकी
रहे तुम आदिवासी।
</poem>
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