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Kavita Kosh से
हर कोई कस रहा है आवाज़ा
चोट गर्चे बहुत पुरानी थीचोट ज़ख़्म उसका है आज तक ताज़ा
हमको अपनी ख़ताओं का ‘साग़र’भुगतना ही पड़ेगा पड़े गा ख़मियाज़ा
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