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बे-ठिकाने है दिले-ग़मगीं ठिकाने की कहो
शमेशामे-हिज्राँ<ref>विरह की शाम</ref> , दोस्तो, कुछ उसके आने की कहो।
हाँ न पूछो इक गिरफ़्तारे-कफ़स <ref>पिंजरे में क़ैद</ref> की ज़िन्दगीहमसफ़ीराने-चमन<supref>१चमन के साथी</supref>,कुछ आसियाने आशियाने की कहो
उड़ गया है मंजिले-दुशवार से ग़म का समन्द<supref>२घोड़ा</supref>गेसू-ए-पुरपेचोपुर पेचो-ख़म के ताज़याने<supref>३कोड़ा</supref> की कहो।
बात बनती और बातों से नज़र आती नहीं
शम्ए - बज़्मे - ज़िन्दगी के झिलमिलाने की कहो।
कुछ दिले-मरहूम<supref>४मरा हुआ दिल </supref> की बातें करो, ऐ अहले-ग़म
जिससे वीराने थे आबाद, उस दिवाने की कहो।
दास्ताने - ज़िन्दगी भी किस तरह दिलचस्प है
जो अज़ल<supref>५सृष्टि के प्रारम्भ से </supref> से छिड़ गया है उस फ़साने की कहो।
ये फ़ुसूने - नीमशब, <ref>आधी रात का जादू</ref> ये ख़ाबख़्वाब-सामाँ ख़ामुशी
सामरी फ़न आँख के जादू जगाने की कहो।
उस निगाहे-नाज़ के सौगन्द खाने की कहो।
शाम से की ही गोश-बरआवाज़बर आवाज़ <supref>६आवाज़ पर कान लगाए हुए </supref> है बज़्मे-सुख़नकुछ फ़िराक़ अपनी सुनाओ कुछ जमाने ज़माने की कहो।
शब्दार्थ
१- चमन के साथी, २- घोड़ा, ३- कोड़ा, ४- मरा हुआ दिल, ५- सृष्टि, ६- आवाज़ पर कान लगाये।
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