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17:55, 9 सितम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=साक़िब लखनवी
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<poem>
नाज़ो-अदा की चोटें, सहना तो और शै है।
ज़ख्मों को देख लेता कोई, तो देखता मैं॥
बर्क़े जमाले-वहदत! तू ही मुझे बत दे।
शोला तो दूर भड़का, फिर किसलिए जला मैं?
</poem>