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|संग्रह=सूर्य से सूर्य तक / अवतार एनगिल
}}
<poem>कहां गया वोझर गईचील सुबह की जोगिया फलियों परअंजुरी मेंमचलता चलता था जो?गुनगुनी धूप
कहां गया वोढल चलाफुहारों नहाई सिन्दूरी सांझ संग़दोपहर की धूप मेंदीप-सा जलता था जो?जाने क्या घटा कि रास्तों पर उड़ते पत्तेफिर से पेड़ों पर चढ़ने लगेटहनियों पर उगने लगेकोमल इस्पात
जाने क्या हुआ
कि उफनती शरारतें
मौन मछलियां बन
मथने लगी मन
जाने कबगालों पर गिरती फुहाररेन कोट ने ढक दी बोलो न बिक्रमाअर्क !क्यों चूक जाता रुक गई हैफिरसिन्दूरी साअंझ का जादूधानी नदी कीक्यों बच जाता हैजलने बहती आवाज़और जलकर चुकने का एहसास ?टंग गई क्यों चुभ जाता है सूरजशूल-सा आँख में ?और आंख आकाश के खेमे पर हाथ रख क्यों भटक जाते हैं हमइन अनजान रास्तों एक कुतिया की भूल-भुलैयों में ?चीख़ :
</poem>