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रात अन्धेरी में पहाड़ी की डरौनी मूर्ति
कैफ़ियत एक मनोहर थी वह पैदा करती-
दरख़्तों की हू हू, पबन की लपट,
निशा मय प्रकृति वो कर्कश समय