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नागिन / हरिवंशराय बच्चन

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कज्‍जल-सा कालापन लेकर,
तू नवल सृष्‍टि‍ सृष्‍टि की ऊषा की
नव द्युति अपने अंगों में भर,
दृग-कोयों का रच बंदीघर,
कौंधती तड़‍ित तड़ित को जिह्वा-सी
विष-मधुमय दाँतों में दाबे,
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