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|रचनाकार=आरज़ू लखनवी
}}
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सबब बग़ैर था हर जब्र क़ाबिले इल्ज़ाम।
बहाना ढूंढ लिया, देके अख्तियार मुझे॥
किया है आग लगाने को बन्द दरवाज़ा।
कि होंट सी के बनाया है राज़दार मुझे॥
</poem>
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|रचनाकार=आरज़ू लखनवी
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सबब बग़ैर था हर जब्र क़ाबिले इल्ज़ाम।
बहाना ढूंढ लिया, देके अख्तियार मुझे॥
किया है आग लगाने को बन्द दरवाज़ा।
कि होंट सी के बनाया है राज़दार मुझे॥
</poem>