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यह चरण ध्वनि धीमे-धीमे!
चिड़ियाँ चहकीं, तारों की-
समाधि पर, नभ चीत्कार तुम्हारी!
आँख-मिचौनी में राका-रानी
ने अपनी मणियाँ हारीं।
इस अनगिन प्रकाश से,
गिनती के तारे कितने प्यारे थे?
मेरी पूजा के पुष्पों से
वे कैसे न्यारे-न्यारे थे?
 
देरी, दूरी, द्वार-द्वार, पथ-
बन्द, न रोको श्याम इसी में
यह चरण ध्वनि धीमे-धीमे!
 
हो धीमे पद-चाप, स्नेह की
जंजीरें सुन पड़ें सुहानी
दीख पड़े उन्मत्त, भारती,
कोटि-कोटि सपनों की रानी
 
यही तुम्हारा गोकुल है,
वृन्दावन है, द्वारिका यहीं है
यहीं तुम्हारी मुरली है
लकुटी है, वे गोपाल यहीं हैं!
 
’गोधूली’ का कर सिंगार,
मग जोह-जोह लाचार झुकी मैं।
यह चरण ध्वनि धीमे-धीमे!
</poem>
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