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{{KKRachna
|रचनाकार=जाँ निसार अख़्तर
}}
[[Category:रुबाई]]
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चाल और भी दिल-नशीन हो जाती है
फूलों की तरह ज़मीन हो जाती है

चलती हूँ जो साथ-साथ उनके तो सखी
खुद चाल मेरी हसीन हो जाती है
</poem>