भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKRachna
|रचनाकार=नीलेश रघुवंशी
|संग्रह=घर-निकासी / नीलेश रघुवंशी
}}
{{KKCatKavita}}
<poem> पक्षियों को झुण्ड में जाते देखती हूँ जब भी
पहुँच जाती हूँ बचपन के दिनों में
देखती हूँ
