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जैसे जब से तारा देखा / अज्ञेय

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|संग्रह=कितनी नावों में कितनी बार / अज्ञेय
}}
{{KKCatKavita}}<poem> क्या दिया-लिया? <br> जैसे <br> जब तारा देखा <br> सद्यःउदित <br> —शुक्र, स्वाति, लुब्धक— <br> कभी क्षण-भर <br> यह बिसर गया <br> मैं मिट्टी हूँ; <br> जब से प्यार किया, <br> जब भी उभरा यह बोध <br> कि तुम प्रिय हो— <br> सद्यःसाक्षात् हुआ— <br> सहसा <br> देने के अहंकार <br> पाने की ईहा से <br> होने के अपनेपन <br> (एकाकीपन!) से <br> उबर गया। <br> जब-जब यों भूला, <br> धुल कर मंज कर <br> एकाकी से एक हुआ। <br> जिया। <br/poem>
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