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हक / अरुण कमल

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|संग्रह = सबूत / अरुण कमल
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मेरे घर से सटा सरसों का खेत यह
 
:::::मेरा नहीं
 
लेकिन रोज़ रात मेरी कोठरी में
 
आती है सरसों के फूलों की कौंधती गंध
 
एक ही वार में काटती मुझे
 
और रात भर मैं जगा रह जाता हूँ
 
छोटी-सी कोठरी गंध-भीड़ भरी
 
क्या थोड़ा भी हक़ नहीं मेरा इस खेत पर?
 
मुझ को मिल गई है सारी सुगन्ध
 
दाना ले जाए भले खेत का मालिक...
 
थोड़ा भी हक़ नहीं?
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