भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|रचनाकार=अरुणा राय
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
'''[[कुमार मुकुल]] के लिए'''
अभी तो बस सुरमयी आँखें लिखीं हैं तूने<br>तारीफ़ की है उनमें थक्कों में जमते दिन-ब-दिन <br>जिबह किए जाते मेरे ख़ाबों का रक्त<br>तुकों की लय पर प्रकट किया है विस्मय पर वह क्षय कहाँ लिखा है तूने<br><br>जो मेरी निग़ाहों से उठती स्वर-लहरियों को बारहा जज़्ब किए जा रहा है
अभी तो बस तारीफ़ की कमनीयता लिखी है<br>तूने मेरी मेरे तुकों की लय पर प्रकट किया नाज़ुकी लिखी है विस्मय<br>लबों की पर वह क्षय बाँकपन कहाँ लिखा है<br>तूने जो मेरी निग़ाहों से उठती स्वर-लहरियों जिसने हज़ारों को <br>बारहा जज़्ब किए जा रहा पीछे छोड़ा है<br><br> और फिर भी जिसके नाख़ून और सींग नहीं उगे हैं
अभी तो बस कमनीयता लिखी है तूने मेरी<br>नाज़ुकी लिखी है लबों की<br>वह बाँकपन कहाँ लिखा है तूने<br>जिसने हज़ारों को पीछे छोड़ा है <br>और फिर भी जिसके नाख़ून और सींग<br>नहीं उगे हैं<br><br> अभी तो बस<br>रंगीन परदों, तकिए के गिलाफ़ और क्रोशिए की<br>कढ़ाई का ज़िक्र किया है तूने<br>मेरे जीवन की लड़ाई और चढ़ाई का ज़िक्र <br> तो बाक़ी है अभी...<br><br>
अभी तुझे वह कविता लिखनी है, जानेमन...
</poem>