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|रचनाकार=अरुणा राय
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'''[[कुमार मुकुल]] के लिए'''
'''[[कुमार मुकुल]] के अभी तूने वह कविता कहाँ लिखी है, जानेमन मैंने कहाँ पढ़ी है वह कविता अभी तो तूने मेरी आँखें लिखीं हैं, होंठ लिखे हैं कंधे लिखे हैं उठान लिए''' <br>और मेरी सुरीली आवाज लिखी है
अभी तूने वह कविता कहाँ लिखी है, जानेमन<br>पर मेरी रूह फ़ना करते मैंने उस शोर की बाबत कहाँ पढ़ी है वह कविता<br>अभी तो लिखा कुछ तूने मेरी आँखें लिखीं हैं, होंठ लिखे हैं<br>कंधे लिखे हैं उठान लिए<br>जो मेरे सरकारी जिरह-बख़्तर के बावजूद और मेरी सुरीली आवाज लिखी मुझे अंधेरे बंद कमरे में एक झूठी तस्सलीबख़्श नींद में ग़र्क रखता है<br><br>
पर मेरी रूह फ़ना करते <br>उस शोर की बाबत कहाँ लिखा कुछ अभी तो बस सुरमयी आँखें लिखीं हैं तूने<br>जो मेरे सरकारी जिरहउनमें थक्कों में जमते दिन-ब-बख़्तर के बावजूद<br>दिन मुझे अंधेरे बंद कमरे में <br>जिबह किए जाते मेरे ख़ाबों का रक्त एक झूठी तस्सलीबख़्श नींद में ग़र्क रखता कहाँ लिखा है<br><br>तूने
अभी तो बस सुरमयी आँखें लिखीं हैं तूने<br>तारीफ़ की है उनमें थक्कों में जमते दिन-ब-दिन <br>जिबह किए जाते मेरे ख़ाबों का रक्त<br>तुकों की लय पर प्रकट किया है विस्मय पर वह क्षय कहाँ लिखा है तूने<br><br>जो मेरी निग़ाहों से उठती स्वर-लहरियों को बारहा जज़्ब किए जा रहा है
अभी तो बस तारीफ़ की कमनीयता लिखी है<br>तूने मेरी मेरे तुकों की लय पर प्रकट किया नाज़ुकी लिखी है विस्मय<br>लबों की पर वह क्षय बाँकपन कहाँ लिखा है<br>तूने जो मेरी निग़ाहों से उठती स्वर-लहरियों जिसने हज़ारों को <br>बारहा जज़्ब किए जा रहा पीछे छोड़ा है<br><br> और फिर भी जिसके नाख़ून और सींग नहीं उगे हैं
अभी तो बस कमनीयता लिखी है तूने मेरी<br>नाज़ुकी लिखी है लबों की<br>वह बाँकपन कहाँ लिखा है तूने<br>जिसने हज़ारों को पीछे छोड़ा है <br>और फिर भी जिसके नाख़ून और सींग<br>नहीं उगे हैं<br><br> अभी तो बस<br>रंगीन परदों, तकिए के गिलाफ़ और क्रोशिए की<br>कढ़ाई का ज़िक्र किया है तूने<br>मेरे जीवन की लड़ाई और चढ़ाई का ज़िक्र <br> तो बाक़ी है अभी...<br><br>
अभी तुझे वह कविता लिखनी है, जानेमन...
</poem>
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