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|रचनाकार=अली सरदार जाफ़री
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'''ग़ज़ल२'''
 
आये हम ग़ालिब-ओ-इक़बाल के नग़्मात के बाद
मुस्‌हफ़े-इश्को़-जुनूँ हुस्न की आयात के बाद
तश्नगी है कि बुझाये नहीं बुझती ‘सरदार’
बढ़ गयी कौसरो-तस्नीम<ref>स्र्वर्ग की हौज़ और नहर</ref> की सौगात के बाद
 
 
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