भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
तब
किन्ही किन्हीं अनाम सड़कों को मथता
भागता,आता है एक किशोर
फिर भी
रेल का वह अंतिम डिब्बा
जिसके दरवाज़े का
काला खालीपनख़ालीपनअम्बर--की--आंख---सा--झाकता झाँकता है
हे राजा !
इस किशोर के साथ
अक्सर अंधेरे अँधेरे सपनों में
यही सब घटता है
जागता है तो देखता है
ख़ूबसूरत सपने
सोता है तो देखता है
बदसूरत सच्चाईयां सच्चाईयाँ
----एक सपने पर आधारित
</poem>