भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
47 bytes removed,
16:06, 9 नवम्बर 2009
|रचनाकार =मुनव्वर राना
}}
[[Category:ग़ज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem>थकी - मांदी हुई बेचारियां बेचारियाँ आराम करती हैंन छेड़ो ज़ख़्म को बीमारियाँ आराम करती हैं
न छेड़ो ज़ख़्म सुलाकर अपने बच्चे को बीमारियां यही हर माँ समझती हैकि उसकी गोद में किलकारियाँ आराम करती हैं
किसी दिन ऎ समुन्दर झांक मेरे दिल के सहरा में
न जाने कितनी ही तहदारियाँ आराम करती हैं
सुलाकर अपने बच्चे को यही हर अभी तक दिल में रोशन मां समझती हैहैं तुम्हारी याद के जुगनूअभी इस राख में चिन्गारियाँ आराम करती हैं
कि उसकी गोद में किलकारियां आराम करती हैं किसी दिन ऎ समुन्दर झांक मेरे दिल के सहरा में न जाने कितनी ही तहदारियां आराम करती हैं अभी तक दिल में रौशन हैं तुम्हारी याद के जुगनू अभी इस राख में चिन्गारियां आराम करती हैं कहां रंगों की आमेज़िश <ref>प्रकटन</ref> की ज़हमत <ref>कष्ट</ref> आप करते हैं लहू से खेलिये पिचकारियां पिचकारियाँ आराम करती हैं</poem> आमेज़िश=प्रकटन; ज़हमत=कष्ट{{KKMeaning}}
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader