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{{KKRachna
|रचनाकार=सौदा
}}
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<poem>
मतलब-तलब हुआ है दिल ऐ शैख़ो-बरहमन
सूरत हरम की कैसी है, क्या शक्ले-दैर है
चाहा कि जूँ-हुबाब मैं देखूँ ये क़ायनात
खोले नयन तो और ही आलम की सैर है
</poem>
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|रचनाकार=सौदा
}}
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<poem>
मतलब-तलब हुआ है दिल ऐ शैख़ो-बरहमन
सूरत हरम की कैसी है, क्या शक्ले-दैर है
चाहा कि जूँ-हुबाब मैं देखूँ ये क़ायनात
खोले नयन तो और ही आलम की सैर है
</poem>