555 bytes added,
16:32, 13 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र
}}
<poem>
सखी मोरे सैंया नहिं आये, बीति गई सारी रात।
दीपक-जोति मलिन भई सजनी, होय गयो परभात।
देखत बाट भई यह बिरियाँ, बात कही नहिं जात।
’हरीचंद’ बिन बिकल बिरहिनी ठाढ़ी ह्वै पछितात॥
</poem>