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{{KKRachna
|रचनाकार= हसरत मोहानी
}}
[[category: ग़ज़ल]]
<poem>
इश्क़े-बुताँ को जी का जंजाल कर लिया है
आख़िर में मैंने अपना क्या हाल कर लिया है

संजीदा<ref >गम्भीर</ref> बन के बैठो अब क्यों न तुम कि पहले
अच्छी तरह से मुझको पामाल<ref >पद-दलित</ref> कर लिया है

नादिम<ref >लज्जित</ref> हूँ जान देकर, आँखों को तूने ज़ालिम
रो-रो के बाद मेरे क्यों लाल कर लिया है

और भी हो गए बेगाना वो गफ़लत करके
आज़माया जो उन्हें तर्के-मुहब्बत<ref >प्रेम का परित्याग</ref> करके

दिल ने छोड़ा है न छोड़े तेरे मिलने का ख़याल
बारहा<ref >कई बार</ref> देख लिया हमने मलामत<ref >निन्दा</ref> करके

रुह ने पाई है तकलीफ़े-जुदाई से निजात
आपकी याद को सरमायाए-राहत<ref >आनन्दमयी</ref> करके

छेड़ से अब वो ये कहते हैं कि संभलो 'हसरत'
सब्रो-ताबे-दिल-बीमार<ref >प्रेमी हृदय की शक्ति और शान्ति</ref> को ग़ारत करके

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