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{{KKRachna
|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
|संग्रह=उन हाथों से परिचित हूँ मैं / शलभ श्रीराम सिंह
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
पहले एक लकीर बनी
फिर रोलर घूमने लगा
याददाश्त के ऊपर।
यंत्रणा का ऐसा स्वरुप
इससे पहले कहाँ था दुनिया में?
सभ्यता का यह अभिनव दंड-विधान
मुबारक हुआ हम सब को अपने आप
शरीर के अनुसार सज़ा खोजी हमने
अपने लिए।
अपने लिए बहुत कुछ खोजा हमने
यहाँ तक कि सर्वनाश भी।
रचनाकाल : 1991, विदिशा
</poem>
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|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
|संग्रह=उन हाथों से परिचित हूँ मैं / शलभ श्रीराम सिंह
}}
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पहले एक लकीर बनी
फिर रोलर घूमने लगा
याददाश्त के ऊपर।
यंत्रणा का ऐसा स्वरुप
इससे पहले कहाँ था दुनिया में?
सभ्यता का यह अभिनव दंड-विधान
मुबारक हुआ हम सब को अपने आप
शरीर के अनुसार सज़ा खोजी हमने
अपने लिए।
अपने लिए बहुत कुछ खोजा हमने
यहाँ तक कि सर्वनाश भी।
रचनाकाल : 1991, विदिशा
</poem>