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Kavita Kosh से
बस काफ़ी है, अब तुम जाओ! वह क्षण बीत गया
धरती सरस हुई, झंझ्हा झंझा का, अब बल रीत गया,
और पवन जो मन्द-मन्द, तरू, पत्ते सहलाए
'''रचनाकाल : 18231835'''
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