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उडु को ज्योति उसी ने दी,
::जिसने निशि को अँधियाली है।
:::(४३)
जीवन ही कल मृत्यु बनेगा,
::और मृत्यु ही नव-जीवन,
जीवन-मृत्यु-बीच तब क्यों
::द्वन्द्वों का यह उत्थान-पतन?
ज्योति-बिन्दु चिर नित्य अरे, तो
::धूल बनूँ या फूल बनूँ,
जीवन दे मुस्कान जिसे, क्यों
::उसे कहो दे अश्रु मरण?
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