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ज़ंजीरें / रंजना जायसवाल

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<poem>
स्त्री
काट रही है
ज़ंजीरें
थोड़ी-थोड़ी रोज़

और...
तड़प रही है
कट गई

ज़ंजीरों की
स्मृति में...।
</poem>