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18:30, 23 जनवरी 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना जायसवाल
|संग्रह=मछलियाँ देखती हैं सपने / रंजना जायसवाल
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
स्त्री
काट रही है
ज़ंजीरें
थोड़ी-थोड़ी रोज़
और...
तड़प रही है
कट गई
ज़ंजीरों की
स्मृति में...।
</poem>