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14:11, 24 जनवरी 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना जायसवाल
|संग्रह=मछलियाँ देखती हैं सपने / रंजना जायसवाल
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
मन की
गुनगुनी आँच पर
पकते हैं
कच्चे हरे शब्द
बनती हैं तब
प्रेम की
सब्ज़-नील कविताएँ।
</poem>