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{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना जायसवाल
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<poem>
मन की
गुनगुनी आँच पर
पकते हैं
कच्चे हरे शब्द

बनती हैं तब
प्रेम की
सब्ज़-नील कविताएँ।
</poem>