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'''बनिया होने के माने हैं'''{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=मुकेश जैन |संग्रह=वे तुम्हारे पास आएँगे / मुकेश जैन}}{{KKCatKavita}}<poem>बनिया होने के माने हैं<br>चोर और कमीना होना<br>एक गँवार आदमी होना<br>
जो जिन्दगी जीना नहीं जानता है
खूबसूरत लड़कियाँ बनियों के लिए<br> नहीं होतीं हैं<br> और बौद्धिकों के लिए तो बनिया<br>
बात करने के काबिल भी नहीं
बनिया होने के माने हैं<br> जिन्दगी ढोना<br> कोई बाप सीधा रुख नहीं करता है<br> बनियों की तरफ़<br> क्लर्कों के बाद आती है बनियों<br>
की औकात
बनिया होने के माने हैं<br> अयोग्य होना<br>
प्रगतिशीलों के लिए अछूत
मैं बनिया हूं और कविता लिखता हूँ .
______________________________________ 21_______21/03/1992</poem>
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