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|रचनाकार=देवमणि पांडेय
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[[Category:ग़ज़ल]]{{KKCatGhazal‎}}‎
इंद्रधनुष में जैसे रंग
 
ख़्वाब रहे हैं मेरे संग।
 
उस चेहरे ने दस्तक दी
 
तन-मन में भर गई उमंग।
 
प्रेम नगर मे पता चला
 
चाहत की गलियाँ हैं तंग।
 
मैं कुछ ऐसे तन्हा हूँ
 
जैसे कोई कटी पतंग।
 
ख़ुशबू ने फूलों से कहा
 
जीना-मरना तेरे संग।
 
लमहे में सदियाँ जी लें
 
हम तो ठहरे, यार, मलंग।
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