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'''{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=मुकेश जैन |संग्रह=वे तुम्हारे पास आएँगे / मुकेश जैन}}{{KKCatKavita}}<poem>जब आदमी '''अपनी आदिमता में जीते होते हैंवह चींखता है भयानक(तो)रात और स्याह हो जाती है,
जब आदमी<br />अपनी आदिमता अपने बंद कमरे में जीते होते हैं<br /> वह चींखता है<br /> चादर को अपने चारों ओर भयानक<br /> और कसकर लपेट लेता हूं (तो)<br /> रात और स्याह हो जाती है,<br /><br /> स्वस्थ सांस लेने कोमुँह चादर से बाहर निकालने कासाहस नहीं होता
अपने बंद कमरे में<br /> चादर को अपने चारों ओर<br /> और कसकर लपेट लेता हूं<br /> और स्वस्थ सांस लेने को<br />मुँह चादर से बाहर निकालने का<br /> साहस नहीं होता,<br /><br /> वह क्यों चींखता है<br /> यह सवाल<br /> बहरहाल<br /> मैं<br /> रात के अंधेरे में नहीं पूछता<br /> दिन के उजाले में सोचता हूं.<br /><br />
फ़िलहाल<br /> मेरे पास<br /><br />
इस सवाल का कोई ज़वाब नहीं<br />
वह किसके विरुद्ध चींखता है
'''रचनाकाल:''' ०२/दिसम्बर/१९८८
</poem>
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