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Kavita Kosh से
<poem>एक चिड़िया उड़ रही थी<br />आकाश में,<br />उसकी पूरी उड़ान देखने का<br />
समय न था.
फूल हिल रहे थे<br />कई-कई रंगों में<br />उनके रंग पहचानने का<br />
समय न था.
थोड़ी बदली थी<br />जो ढक लेती थी धूप<br />फिर निकलती धूप को<br />देखने का<br />
समय न था.
समय न था<br />कि उतरती सीड़ियों पर<br />जल्दी-जल्दी न उतरूँ.<br />
समय न था.
</poem>