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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शांति सुमन |संग्रह=एक सूर्य रोटी पर / सांति सुमन }…
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{{KKRachna
|रचनाकार=शांति सुमन
|संग्रह=एक सूर्य रोटी पर / सांति सुमन
}}
{{KKCatKavita}}
थरथराती टहनियाँ हैं<br>
हिल रहे हैं पेड़ ।<br>
एक चर्चा, एक अंदेशा<br>
बीतते दिन का<br>
और चिड़िया ने सहेजा<br>
एक नया तिनका<br>
धार की ये मछलियाँ हैं <br>
लहर लेती हैं घेर ।<br>
बूँद जैसे दबी हो भीतर<br>
कहीं इस रेत में<br>
फसल जैसे सूखती हो<br>
भरे सावन खेत में<br>
सूर्यमुख ये फुनगियाँ हैं<br>
रही जल को टेर ।<br>
दुःख हो गए इतने बड़े<br>
हम हो गए छोटे<br>
शहर जाकर गाँव को हम<br>
फिर नहीं लौटे<br>
किसी ने पूछा नहीं है<br>
समय का यह फेर ।<br>
(पृष्ठ १०६ पर)
{{KKRachna
|रचनाकार=शांति सुमन
|संग्रह=एक सूर्य रोटी पर / सांति सुमन
}}
{{KKCatKavita}}
थरथराती टहनियाँ हैं<br>
हिल रहे हैं पेड़ ।<br>
एक चर्चा, एक अंदेशा<br>
बीतते दिन का<br>
और चिड़िया ने सहेजा<br>
एक नया तिनका<br>
धार की ये मछलियाँ हैं <br>
लहर लेती हैं घेर ।<br>
बूँद जैसे दबी हो भीतर<br>
कहीं इस रेत में<br>
फसल जैसे सूखती हो<br>
भरे सावन खेत में<br>
सूर्यमुख ये फुनगियाँ हैं<br>
रही जल को टेर ।<br>
दुःख हो गए इतने बड़े<br>
हम हो गए छोटे<br>
शहर जाकर गाँव को हम<br>
फिर नहीं लौटे<br>
किसी ने पूछा नहीं है<br>
समय का यह फेर ।<br>
(पृष्ठ १०६ पर)