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धार की मछलियाँ / शांति सुमन

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थरथराती टहनियाँ हैं<br>
हिल रहे हैं पेड़ ।<br>

एक चर्चा, एक अंदेशा<br>
बीतते दिन का<br>
और चिड़िया ने सहेजा<br>
एक नया तिनका<br>

धार की ये मछलियाँ हैं <br>
लहर लेती हैं घेर ।<br>

बूँद जैसे दबी हो भीतर<br>
कहीं इस रेत में<br>
फसल जैसे सूखती हो<br>
भरे सावन खेत में<br>

सूर्यमुख ये फुनगियाँ हैं<br>
रही जल को टेर ।<br>

दुःख हो गए इतने बड़े<br>
हम हो गए छोटे<br>
शहर जाकर गाँव को हम<br>
फिर नहीं लौटे<br>

किसी ने पूछा नहीं है<br>
समय का यह फेर ।<br>


(पृष्ठ १०६ पर)
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