भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
चांद तारों से पूछ ले, या किनारो से पूछ ले
दिल के मारो से पूछ ले, क्या हो रहा है असर
ले रोक अपनी नज़र, ना देख इस कदर ये दिल है बड़ा बेसबर ...
मुस्कुराती है चांदनी, छा जाती है ख़ामोशी
गुनगुनाती है ज़िंदगी, ऐसे में हो कैसे गुज़र
ले रोक अपनी नज़र ना देख इस कदर ये दिल है बड़ा बेसबर...
</poem>