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ज़िन्दगी के अजीब मेले थे <br><br>
आज ज़ेहन-ओ-दिल भूखों मरते हैं <br>
उन दिनों फ़ाके भी हमने झेले थे <br><br>
ख़ुदकुशी क्या ग़मों का हल बनती <br>
मौत के अपने भी सौ झमेले थे <br><br>