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Kavita Kosh से
एक ख़्वाब हैं जहां में बिखर जाए हम तो क्या|
अब कौन मुंतज़िर <ref>इंतज़ार करने वाला</ref> है हमारे लिये वहाँ,
शाम आ गई है लौट के घर जाए हम तो क्या|
दिल की ख़लिश तो साथ रहेगी तमाम उम्र,