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|रचनाकार=ठाकुर
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<poem>
केसर सुरंग हू के रंग में रंगौगी आजु,
:और गुरु लोगन की लाज कों पहेलिवौ ।
गाइवौ-बजाइवौ जू, नाँचिवौ-नँचाइवौ जू,
:रस वस ह्वैके हम सब विधि झेलिवौ ॥
’ठाकुर’ कहत बाल, होनी तौ करौंगी सब,
:एक अनहोनी कहो कौन विधि ठेलिवौ ।
कर कुच पेलिवौ, गरे में भुजि मेलिवौ जू,
:ऐसी होरी खेलिवौ जू, हम तौ न खेलिवौ ॥
</poem>
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