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03:45, 2 मार्च 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
|संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
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<poem>
सरग न चाहैं अपबरग न चाहैं सुनो
::भुक्ति-मुक्ति दोऊ सौं बिरक्ति उर आनैं हम ।
कहै रतनाकर तिहारे जोग-रोग माहि
::तन मन सांसनि की सांसति प्रमानैं हम ॥
एक ब्रजचंद कृपा-मंद-मुसकानि ही मैं
::लोक परलोक कौ अनंद जिय जानैं हम ।
जाके या बियोग-दुख हू में सुख ऐसो कछू
::जाहि पाइ ब्रह्म-सुख हू मैं दुःख मानैं हम ॥49॥
</poem>