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|रचनाकार=[[गा़लिब]]
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>बे-ऐतदालियों से, सुबुक<ref>लज्जित</ref> सब में हम हुए
जितने ज़ियादा हो गये उतने ही कम हुए
बेपिन्हां था दामे-ऐतदालियों से सुबुक सब में सख़्त क़रीब आशियाने के उड़ने न पाये थे कि गिरफ़्तार हम हुए <br>जितने ज़ियादा हो गये उतने ही कम हुए<br><br>
पिन्हाँ था दामे-सख़्त क़रीब आशियाँ के <br>हस्ती हमारी अपनी फ़ना पर दलील है उड़ने न पाये थे यां तक मिटे कि गिरफ़्तार आप हम अपनी क़सम हुए <br><br>
हस्ती हमारी अपनी फ़ना पर दलील है सख़्ती-कशाने-इश्क़<brref>प्रेम का दुःख सहने वाले</ref> की पूछे है क्या ख़बर याँ तक मिटे के आप हम अपनी क़सम हुए वो लगा रफ़्ता-रफ़्ता सरापा अलम<brref>सर से पांव तक दुःख की मूर्ती<br/ref>हुए
सख़्तीकशाने-इश्क़ की पूछे है तेरी वफ़ा से क्या ख़बर <br>हो तलाफ़ी, कि दहर में वो लोग रफ़्तातेरे सिवा भी हम पे बहुत-रफ़्ता सरापा अलम से सितम हुए <br><br>
तेरी वफ़ा से क्या हो तलाफ़ी कि दहर में लिखते रहे जुनूं की हिकायत-ए-ख़ूंचकां<brref>रक्त-रंजित की कहानी</ref>तेरे सिवा भी हम पे बहुत से सितम हुए हरचंद उसमें हाथ हमारे क़लम<brref>कट जाना<br/ref>हुए
लिखते रहे जुनूँ की हिकायतअल्ला-रे तेरी तुन्दी-ए-ख़ूँचकाँ ख़ूं, जिस के बीम़<brref>भय</ref> से हरचंद इस में हाथ हमारे क़लम हुए अज्ज़ा-ए-नाला<brref>रुदन के टुकड़े<br/ref>दिल में मेरे रिज़्क़े-हम हुए
अल्लाह रे! तेरी तुन्दीअहले हवस की फ़तह है, तर्क-ए-ख़ू जिस के बीम से <br>अज्ज़ानवर्द-ए-नाला दिल में मेरे रिज़्क़े-हम हुए इश्क़<brref><brप्रेमोन्माद के संघर्ष को त्याग देना/ref>जो पाँव उठ गए वही उन के अ़लम हुए
अहल-ए-हवस की फ़तह है तर्क-ए-नबर्द-ए-इश्क़ <br>नाले अदम में चंद हमारे सुपुर्द थे जो पाँव उठ गये वही उन के अलम हुए वां न खिंच सके सो वो यां आके दम<brref>सांस लेना<br/ref>हुए
नाल-ए-अदम में चंद हमारे सुपुर्द थे <br>जो वाँ न खिंच सके सो वो याँ आके दम हुए <br><br> छोड़ी 'असद' न हम ने हमने गदाई में दिल्लगी दिल-लगी साइल<brref>भिखारी</ref>साइल हुए तो आशिक़आ़शिक़-ए-अहल-ए-करम हुए <br><br/poem>{{KKMeaning}}