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अज्ज़ा-ए-नाला<ref>रुदन के टुकड़े</ref> दिल में मेरे रिज़्क़े-हम हुए
अहले हवस की फ़तह है, तर्क-ए-नवर्द-ए-इश्क़<ref>प्रेमोन्माद के संघर्ष को त्याग देना</ref>
जो पाँव उठ गए वही उन के अ़लम हुए
छोड़ी 'असद' न हमने गदाई में दिल-लगी
साइल<ref>भिखारी</ref> हुए तो आ़शिक़-ए-अहल-ए-करम हुए</poem>
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