भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=पंजाबी }} <poem> सड़के सड़के…
{{KKGlobal}}
{{KKLokRachna
|रचनाकार=अज्ञात
}}
{{KKLokGeetBhaashaSoochi
|भाषा=पंजाबी
}}
<poem>
सड़के सड़के जान्दिये मुटिआरे नी
कंडा चुबा तेरे पैर बांकिये नारे नी.
कौन कडे तेरा कांडड़ा मुटिआरे नी,
कौन सहे तेरी पीड बांकिये नारे नी.
भाबो कडे मेरा कांडड़ा सिपैया वे,
वीर सहे मेरी पीड मैं तेरी मेहरम न
खुई ते पाणी भरेंदिये मुटिआरे नी,
पाणी दा घुट पिला, बांकिये नारे नी.
अपना कड्या न दवां सिपैया वे,
लज्ज पई भर पी, जान्देया रहिया वे.
घड़ा तेरा जे भन्न देयां मुटियारे नी,
लज्ज करां टोटे चार , बांकिये नारे नी.
घड़ा भजे कुम्ह्यारां दा सिपैया वे,
लज्ज पट्टे दी डोर मैं तेरी मेहरम न
वड्डे वेले दी टोरिये सुण नूअडिये
आयियों शामां पा नी भोली नूअडिये
इक उच्चा लम्मा गाबरू सुण सस्सडिये,
बैठाई झगड़ा पा नी भोलिए सस्सडिये
ओ तां मेरा पुत्त लग्गे सुण नूअडिये
तेरा लागदा ए कंत नी भोली नूअडिये
भर कटोरा दुधे दा नी सुण नूअडिये,
जाके कंत मना नी भोली नूअडिये
तेरा आंदा मैं न पियाँ मुटिआरे नी,
खुए वाली गल सुणा नी बांकिये नारे नी.
निक्की हुन्दी नू छड्ड गया सिपैया वे,
हुण होइयां मुटिआर मैं ता तेरी मेहरम हाँ.
सौ गुनाह मन्ने रब बख्शे सिपैया वे,
इक बख्शेंगा तू, मैं ता तेरी मेहरम<ref>प्रेमिका</ref> हाँ
</poem>
{{KKMeaning}}