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Kavita Kosh से
मैं सुनता था। कोई छू ले कहीं
मेरी पीठ नहीं- आना जाना लोगों का
दाँतों की चमक सुथरी नाकें- वह रोज़-रोज़
इस रोज़ आज कल भी मुझ पर झुक जाएगी