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10:35, 11 मार्च 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
|संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
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<poem>
नैननि के नीर औ उसीर सौ पुलकावलि
::जाहि करि सीरौ सीरी बातहिं विलासैं हम ।
कहै रतनाकर तपाई बिरहातप की
::आवन न देति जामैं बिषम उसासैं हम ॥
सोई मन-मन्दिर तपावन के काज आज
::रावरे कहे तैं ब्रह्म-ज्योति लै प्रकासें हम ।
नन्द के कुमार सुकुमार कौं बसाइ यामैं
::ऊधौ अब लाइ कै बिसास उदबासैं हम ॥56॥
</poem>