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|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
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<poem>
जौहैं अभिराम स्याम चित की चमक ही मैं
::और कहा ब्रह्म की जगाइ जोति जौहैंगी ।
कहै रतनाकर तिहारी बात ही सौं रुकी
::साँस की न साँसति कै औरौ अवरौहैंगी ॥
आपुही भई है मृगछाला ब्रजबाला सूखि
::तिनपै अपर मृगछाला कहा सौहैंगी ।
ऊधौ मुक्ति-माल बृथा मढ़त हमारे गरैं
::कान्ह बिना तासौं कहौ काकौ मन मोहैंगी ॥57॥
</poem>
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