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11:10, 25 मार्च 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
|संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
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<poem>
साधि लैहैं जोग के जटिल जे बिधान ऊधौ
::बाँधि लैहैं लंकनि लपेटि मृगछाला हू ।
कहै रतनाकर सु मेलि लैहैं छार अंग
::झेलि लैहैं ललकि घनेरे घाम पाला हू ॥
तुम तौ कही औ' अनकही कहि लीनी सबै
::अब जौ कहौ तो कहै कचु ब्रज-बाला हू ।
ब्रह्म मिलिबै तै कहा मिलिबै बतावौ हमें
::ताकौ फल जब लौं मिलै ना नन्दलाला हू ॥62॥
</poem>